Thursday 15 December 2011

चुनाव की रेस

लोकतांत्रिक भारत में चुनावी माहोल जल्द ही अपनी पहचान फिर से दिखाने वाला है । भारत में चुनाव से बड़ा पर्व शायद ही कोई हो, और हर आम को इसका इन्तजार रहता है और अभी तो देश के पांच राज्यों उत्तरप्रदेश, उत्तराखणड, गोवा, मणिपुर, पंजाब में चुनाव की घंटी बज गयी  है तो जाहिर सी बात  है की मेले की तैयारी भी हो रही है. मेले की  तैयारी तो हो ही रही है और तमाशबीन भी अपने-अपने उपकरणों के साथ मैदान में आ चुके हैं,  चुनाव की सरगर्मी नेताओ के शुरु हुए दौरों से दिख रहीं है अब तो पूरे देश को इसका इन्तजार है, इस मेले में आने वालों में मीडिया की सबसे अहम भूमिका रहेगी  और अगर इसको मीडिया में जगह न मिले तो यह अधूरा सा लगेगा । खासकर उत्तरप्रदेश इस बार नजर रहेगी ।

 

बीजेपी, कांग्रेस, सपा और बसपा तो मैदान में ख़म ठोक ही रही है साथ ही साथ कई छोटे और मझोले दल भी ताल पर ताल दे रहे हैं. सब को सपने में लखनऊ का ताज  नजर आ रहा है तो बस गद्दी दिख रहीं है  और देश दुनिया में अपना रुतबा जाहिर कर सकें. लेकिन इस बार ताज किसके सर लगेगा यह कहना बड़ा कठिन है. लेकिन एक चीज़ जो सबसे ज्यादा दिख रही है वह यह की हर दल जीत के लिए ही प्रयत्नशील हैं । राज में नीति गायब सी दिख रही है. बड़ा दुःख होता है रोज चलने वाले बहस में पार्टी के नेता अपने को बेदाग बताते हैं और बहस के बाद दागियों की जमात में भोज खाते नजर आते हैं. टीवी पर जिसे गाली देते नहीं अघाते टीवी के बाद उसके साथ गलबाहियां करते नजर आते हैं, हर पार्टी की चाल तो बदली ही है अब उनका चरित्र भी बदल गया है. ईमानदार तो कोई नजर नहीं आता और अगर आता भी है तो वह मुश्किल से ही नजर आता है. राजनीति में आज कल गद्दी के लिए लगी होड़ में कुछ नहीं दिखता जिसका स्पष्ट उदाहरण दिखा मायावती की मूर्तियां और हाथियों  कि मूर्तिया ढ़की गई। कुछ भी कहों राजनीति के इस युद्ध में देखा जाएगा गद्दी किसके हाथ आएग।

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