Friday 30 December 2011
Thursday 29 December 2011
बदलते दौर मे खत्म होते रिश्ते
भारतीय समाज में विवाहित जीवन और वैवाहिक संबंधों का महत्व हमेशा से ही सर्वोपरि रहा है. विदेशों की तुलना में भारतीय लोगों के जीवन में विवाह एक मजबूत और भावना प्रधान संबंध माना जाता है. ऐसा संबंध जिसे किसी भी हाल में तोड़ा या समाप्त नहीं किया जा सकता. लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं रहे. आज वैवाहिक संबंधों की नियति स्थिर नहीं कही जा सकती. जब से पति-पत्नी के अलगाव को तलाक नामक कानूनी संस्था का संरक्षण प्राप्त हुआ है तब से वैवाहिक जीवन और इसके महत्व पर प्रश्नचिंह लगने शुरू हो गए हैं. पहले जहां विवाह के पश्चात हर हाल में लोग एक-दूसरे के साथ रहते थे वहीं आज जरा सी अनबन के कारण वे तलाक लेकर एक-दूसरे से अलग होने का निर्णय ले लेते हैं. समय के साथ-साथ तलाक की इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बढ़त देखी जा सकती है. पहले तलाक केवल उच्चवर्ग में ही स्वीकार्य था. लेकिन आज मध्यम वर्गीय लोगों
के वैवाहिक संबंध तलाक की बलि चढ़ते जा रहे हैं.
के वैवाहिक संबंध तलाक की बलि चढ़ते जा रहे हैं.
एक नए अध्ययन पर गौर करें तो बीते कुछ वर्षों में तलाक की यह बढ़ती दर किसी को भी परेशान कर सकती है. विशेषकर पच्चीस वर्ष में तलाक लेने वाले जोड़ों के आंकड़े में वर्ष 2008 के मुकाबले 2 प्रतिशत की उल्लेखनीय बढ़त देखी गई है. पहले यह आंकड़ा 6 प्रतिशत था अब यह बढ़कर 8 प्रतिशत हो गया है.
एक मैट्रिमोनियल साइट द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार यह देखा गया है कि दूसरी शादी के लिए अपनी प्रोफाइल बनाने वाले लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है. विशेषकर महिलाओं में यह दूसरे विवाह के प्रति रुझान ज्यादा देखा गया है. वर्ष 2008 में उनकी संख्या 3 प्रतिशत थी जो बढ़कर अब पांच प्रतिशत हो गई है. कई समाजशास्त्रियों का कहना है कि शादी टूटने की संख्या बढ़ने का सबसे बड़ा कारण आपसी सहयोग और समझौता करने में आ रही कमी है.
आज महिला और पुरुष दोनों ही आत्मनिर्भर हो गए हैं.आर्थिक रूप से यह बढ़ती स्वतंत्रता अब उनके आपसी संबंधों में बाधा उत्पन्न करने लगी है. पहले महिला और पुरुष निजी और महत्वपूर्ण जरूरतों के लिए एक-दूसरे से जुड़े रहते थे. वहीं आज वे दोनों स्वावलंबी बन गए हैं. दूसरी ओर भौतिक सुखों की बढ़ती चाहत ने भी आपसी संबंधों की नींव को कमजोर कर दी है. विवाह से पहले परिवार वाले अपनी तरफ से पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही विवाह संबंधी कोई भी निर्णय लेते हैं लेकिन फिर भी पति-पत्नी आपस में निर्वाह कर पाएंगे या नहीं यह बात स्पष्ट नहीं हो पाती. अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब विवाह जैसी धार्मिक और सामाजिक संस्था अपना अस्तित्व पूरी तरह गंवा देगी.
Wednesday 28 December 2011
हैकरस का नया जाल
जार्जिया टेक सूचना केंद्र (GTISC)जार्जिया टेक सूचना (GTRI) द्वारा जारी एक रिर्पोट के अनुसार आने वाले समय में ऑनलाइन जानकारी की प्राइवेसी को खतरा गहराएगा। जिसका खास तोर पर नुकसान फेसबुक और ऑर्कुट यूजर्स को होगा। नए परिष्कृत तरीकों से सूचनाएं चुराई जाएगी। आने वाले समय में हैकर सर्च इंजन के खोज परिणामों में अपनी विषाक्त कडिंया शामिल करने में सफल होगें। इससे जाने-अनजाने लोग उनकी साइटों तक पहुंचेंगे या उनके कंप्यूटर संक्रमित हो जाएगें। दूसरी ओर सामाजिक साइटो पर साझां की गई जानकारियां एकत्र कर जरुरतमंद उत्पादको, कॉपरेटजगत को बेची जाएगी। साथ ही नेट सर्फिंग कर रहे मोबाइल फोन भी हैकर की नजर में रहेंगें, मोबाइल व्यवहारो को चुराने की कोशिशे होगीं।
Sunday 18 December 2011
कशमीर समस्या
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव व य़ुद्धो का कारण कश्मीर समस्या को मानना भ्रांति है। सन 1947 से चली आ रही इस समस्या से ही लड़ाइया छिड़ी है। तथापि गहराई से देखने पर मालूम होगा कि समस्त भारत पाकिस्तान संघर्ष और झगड़ो के मूल में और समस्या है और कश्मीर समस्या भी उसी मूल समस्या का एक महत्वपूर्ण अंग है। सन् 1947 में भारत का दुर्भागयपूर्ण विभाजन हुआ। अंग्रजो ने भारत में DIVIDE AND RULE अर्थात “फूट पैदा करो और राज्य करो” की नीति अपनाकर भारतीय राष्टयीता को भंग करने के अनेक प्रयत्न कीए। मुस्लिम लीग ने जो कि भारत के धर्माध मुसलमानो की राजनीतिक संस्था थी, ने आवाज़ उठाई कि भारत में हिंदु और मुस्लमान दो अलग-अलग कौमें है, दोनो साथ मिलकर नहीं रह सकती। अत: मुस्लमानो के लिए अलग देश बनना चाहिए अर्थात पाकिस्तान बनना चाहिए तथा इस विभाजन के साथ ही कश्मीर समस्या को लेकर भारत-पाक में मतभेद बने तथा कश्मीर समस्या का जन्म हुआ।
इतिहास: आजादी के समय में पाकिस्तान ने घुसबैठ करके कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। बचा हिस्सा भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर का अंग बना। हिंदु और मुस्लिम सांप्रदायिक संगठन बन गए। सांप्रदायिक दंगे 1931 से होते आ रहे थे। शेख अब्दुल्ला ने अपने एक भाषण में कहां कि “ प्रजा परिषद भारत में एक धार्मिक शासन लाना चाहता है, जहां मुस्लमानो के धार्मिक हित कुचल दिए जाएंगे।“ राजनैतिक टक्कर लेने के लिए शेख अब्दुल्ला ने खुद को मुस्लिमों के हितैषी के रुप में अपनी छवि बनाई। सन् 1977 से कश्मीर और जम्मू के बीच दुरियां बढ़ती गई। विवाद यह था कि भारत की स्वतंत्रता के समय राजा हरि सिंह यहां के शासक थे अंग्रजो की नीति के अनुसार भारत का विभाजन हो रहां था और समय कश्मीर को लेकर भारत पाक में मतभेद शुरु हो गए। राजा ने भारत के पक्ष में कहां परंतु पाक को यह बात पसंद न थी और जबरन काफी हिस्सा कब्जा करने लगा परंतु भारतीय सेना ने जब काफी हिस्सा बचा लिया तो इस विवाद को सयुंक्त राष्ट में लाया गया।
सयुंक्त राष्ट: भारत कश्मीर समस्या को 1 जनवरी 1948 को सयुंक्त राष्ट सुरक्षा परिषद में लाया गया। परिषद ने भारत और पाक को बुलाया, व स्थिति सुधार के उपाय खोजने की सलाह दी।
भारत और पाक के बीच मतभेद तो चल रहे थे जिसमे कश्मीर समस्या ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और भारत और पाक के मध्य झगड़े भी हुए जैसे 1947 के दंगे, 1965 व 1971 के युद। 1965 तथा 1971 के युद्ध में तो पाक सेना को समपर्ण करना पड़ा था। बाद में कारगिल युद्ध में भी पाक की हार हुई। पाक के बीच हुए युद्ध में उसे हार का सामना करना पड़ा है।
भारतीय पक्ष :
पाकिस्तानी पक्ष:
आंतकवाद
इतिहास: आजादी के समय में पाकिस्तान ने घुसबैठ करके कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। बचा हिस्सा भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर का अंग बना। हिंदु और मुस्लिम सांप्रदायिक संगठन बन गए। सांप्रदायिक दंगे 1931 से होते आ रहे थे। शेख अब्दुल्ला ने अपने एक भाषण में कहां कि “ प्रजा परिषद भारत में एक धार्मिक शासन लाना चाहता है, जहां मुस्लमानो के धार्मिक हित कुचल दिए जाएंगे।“ राजनैतिक टक्कर लेने के लिए शेख अब्दुल्ला ने खुद को मुस्लिमों के हितैषी के रुप में अपनी छवि बनाई। सन् 1977 से कश्मीर और जम्मू के बीच दुरियां बढ़ती गई। विवाद यह था कि भारत की स्वतंत्रता के समय राजा हरि सिंह यहां के शासक थे अंग्रजो की नीति के अनुसार भारत का विभाजन हो रहां था और समय कश्मीर को लेकर भारत पाक में मतभेद शुरु हो गए। राजा ने भारत के पक्ष में कहां परंतु पाक को यह बात पसंद न थी और जबरन काफी हिस्सा कब्जा करने लगा परंतु भारतीय सेना ने जब काफी हिस्सा बचा लिया तो इस विवाद को सयुंक्त राष्ट में लाया गया।
सयुंक्त राष्ट: भारत कश्मीर समस्या को 1 जनवरी 1948 को सयुंक्त राष्ट सुरक्षा परिषद में लाया गया। परिषद ने भारत और पाक को बुलाया, व स्थिति सुधार के उपाय खोजने की सलाह दी।
भारत और पाक के बीच मतभेद तो चल रहे थे जिसमे कश्मीर समस्या ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और भारत और पाक के मध्य झगड़े भी हुए जैसे 1947 के दंगे, 1965 व 1971 के युद। 1965 तथा 1971 के युद्ध में तो पाक सेना को समपर्ण करना पड़ा था। बाद में कारगिल युद्ध में भी पाक की हार हुई। पाक के बीच हुए युद्ध में उसे हार का सामना करना पड़ा है।
भारतीय पक्ष :
1. भारत के अनुसार जम्मू और कश्मीर की लोकतांत्रिक और निर्वाचित सविधान सभा ने 1957 में एकमत से महाराजा ने विलय के कागजात को हामी दे दी थी और राज्य के ऐसा सविधान स्वीकार किया जिसमें कश्मीर को भारत में स्थायी विलय की मान्यता दी गई थी।
2. कई चुनावो में कश्मीरी जनता ने वोट डालकर भारत का साथ दिया है।
3. भारत पाकिस्तान के दो राष्ट के सिद्धांत को नहीं मानता भारत स्वंय धर्मनिरपेक्ष है।
4. कश्मीर का भारत में विलय बिटिश “भारतीय स्वातंत्रय अधिनियम” के तहत कानूनी तौर पर
1. सही था।
5. राज्य को सविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वात्यता प्राप्त है। कोई गैर कश्मीरी यहां जमीन नहीं खरीद सकता।
1. दो राष्ट के सिद्धांत के तहत कश्मीर मुस्लिम बहुल होने के नाते पाकिस्तान में जाना चाहिए। विकल्प होने पर कश्मीरी पाकिस्तान को ही चुनेगा, क्योंकि वो भारत से नफरत करता है।
2. भारत डरता है कि अगर जनमत संग्रह हुआ तो कश्मीरी जनता पाकिस्तान को ही चुनेगी।
3. कानूनी तौर पर कश्मीर के महाराजा द्धारा भारत में विलय गलत था क्योंकि महाराजा ने ये विलय परेशानी की स्थिती में किया।
4. पाकिस्तान की मुख्य नदियां भारत से आती है जिन्हे वह कभी भी रोक सकता है।
जो भी हो आज कश्मीरी जनता पाकिस्तान द्धारा चलाए जा रहे भयानक आंतवाद से जूझ रही है। भारतीय फौज द्धारा चलाए जा रहे आंतवाद-विरोध अभियान ने भी कश्मीरीयों को में मानव अधिकार हनन ही दिए है। भारतीय फौज इस पर अपनी मजबूरी जाहिर करते हुए कहती है कि आंतवादी विरोधी कारवाई में कश्मीरी जनता कभी कभी पिस जाती है।
Thursday 15 December 2011
चुनाव की रेस
लोकतांत्रिक भारत में चुनावी माहोल जल्द ही अपनी पहचान फिर से दिखाने वाला है । भारत में चुनाव से बड़ा पर्व शायद ही कोई हो, और हर आम को इसका इन्तजार रहता है और अभी तो देश के पांच राज्यों उत्तरप्रदेश, उत्तराखणड, गोवा, मणिपुर, पंजाब में चुनाव की घंटी बज गयी है तो जाहिर सी बात है की मेले की तैयारी भी हो रही है. मेले की तैयारी तो हो ही रही है और तमाशबीन भी अपने-अपने उपकरणों के साथ मैदान में आ चुके हैं, चुनाव की सरगर्मी नेताओ के शुरु हुए दौरों से दिख रहीं है अब तो पूरे देश को इसका इन्तजार है, इस मेले में आने वालों में मीडिया की सबसे अहम भूमिका रहेगी और अगर इसको मीडिया में जगह न मिले तो यह अधूरा सा लगेगा । खासकर उत्तरप्रदेश इस बार नजर रहेगी ।
बीजेपी, कांग्रेस, सपा और बसपा तो मैदान में ख़म ठोक ही रही है साथ ही साथ कई छोटे और मझोले दल भी ताल पर ताल दे रहे हैं. सब को सपने में लखनऊ का ताज नजर आ रहा है तो बस गद्दी दिख रहीं है और देश दुनिया में अपना रुतबा जाहिर कर सकें. लेकिन इस बार ताज किसके सर लगेगा यह कहना बड़ा कठिन है. लेकिन एक चीज़ जो सबसे ज्यादा दिख रही है वह यह की हर दल जीत के लिए ही प्रयत्नशील हैं । राज में नीति गायब सी दिख रही है. बड़ा दुःख होता है रोज चलने वाले बहस में पार्टी के नेता अपने को बेदाग बताते हैं और बहस के बाद दागियों की जमात में भोज खाते नजर आते हैं. टीवी पर जिसे गाली देते नहीं अघाते टीवी के बाद उसके साथ गलबाहियां करते नजर आते हैं, हर पार्टी की चाल तो बदली ही है अब उनका चरित्र भी बदल गया है. ईमानदार तो कोई नजर नहीं आता और अगर आता भी है तो वह मुश्किल से ही नजर आता है. राजनीति में आज कल गद्दी के लिए लगी होड़ में कुछ नहीं दिखता जिसका स्पष्ट उदाहरण दिखा मायावती की मूर्तियां और हाथियों कि मूर्तिया ढ़की गई। कुछ भी कहों राजनीति के इस युद्ध में देखा जाएगा गद्दी किसके हाथ आएग।
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