Saturday 21 January 2012

क्या होगा पाकिस्तान का

पाकिस्तान का अस्तित्व 1947 में सामने आया, जब अंग्रेजों ने उसे भारत के काट कर अलग कर दिया. तब से 64 साल के इतिहास में तीन बार सैनिक तख्ता पलट हो चुका है और ज्यादातर समय पाकिस्तान लोकतांत्रिक नहीं, बल्कि सैनिक शासन के अधीन रहा है। हालांकि ऐसे वक्त में जब पाकिस्तान की फौज पहले से ही जनता की रुसवाई झेल रही है, वह तख्ता पलट कर उनका और गुस्सा नहीं लेना चाहेगी. अमेरिकी हमले और एक मेमो के बाद राजनीतिक, सैनिक और कूटनीतिक भंवर में फंसा पाकिस्तान एक बार फिर उथल पुथल की ओर बढ़ रहा है. न्यायपालिका से लेकर सेना तक को सफाई देनी पड़ रही है क्योंकि नागरिक सरकार पर भरोसा टूटता जा रहा है।

हाल ही में देखी गई घटनाओं को देख कर लगता है पाक्सितान अपने कई बुरे दोरो में से गुजर रहा है। चार बार तख्तापलट की मार झेल चुका पाक शायद एक बार फिर से तख्तापलट को झेलने की स्थिती में लग रहा है
पाक्सितान में सबसे पहला तख्तापलट सन 1958 में हुआ। दूसरा तख्तापलट 1969 में, तीसरा 1977 में तथा माना गया सबसे बड़ा तख्तापलट पाकिस्तान में पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुर्शरफ ने 1999 में किया जिसमें उन्होने राष्ट्रपति और सेना प्रमुख की गद्दी काफी समय तक खुद ही संभाली बाद में ज्यादा सवाल उठने पर उन्होने सेना प्रमुख की गद्दी छोड़ दी ।


पाकिस्तान में तख्तापलट की स्थिती तो चल रहीं है साथ साथ सेना के चीफ कियानी की भी राष्ट्रपति जरदारी के साथ बातचीत के हालात अच्छे नहीं माने जा रहे। पाकिस्तान की बड़ी परेशानियों में से एक परेशानी यह भी है कि पाकिस्तान राष्ट्रपति को सुप्रिम कोर्ट ने विदेशी मुद्रा के घपले में भी नोटिस दे रखा है। जिस पर प्रधानमंत्री गिलानी को भी नोटिस भेजा गया क्योंकि गिलानी ने कोर्ट के फैसले को गंभीरता से न लेकर अंदेखी करी जिसके कारण उन्हे भी कोर्ट ने ‘ अवमानना ’ का नोटिस भेज दिया । सूत्रों के अनुसार ‘ जवाब में गिलानी ने सुप्रिम कोर्ट के सामने अपने इस्तीफे की पेशकश रख दी। ‘ पाकिस्तान में यदि सरकार और सेना के बीच हालात कुछ ठीक नहीं लगते तो सेना सारी सत्ता को अपने हाथ में ले लेती है औऱ यहीं कारण रहा है कि पाकिस्तान को एक लोकतांत्रिक देश तो कहां जाता है पर वह नाम का है क्योकि ज्यादातर पाकिस्तान में 64 साल के इतिहास में सेना का शासन ही दिखा है और शायद वहीं हालात इस बार भी दिख रहे है सेना के चीफ और सरकार के बीच न बनने के कारण ।

पाकिस्तान प्रधानमंत्री ने कुछ इस तरह जवाब दिया

“ इंस्लामाबाद के नेशनल आर्टस गैलरी में गिलानी ने कहा कि पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार कों हटाने के लिए षडयंत्र रचे जा रहे है। गिलानी ने कहा कि वे अब देश के सबसे लंबे समय तक पद में रहने वाले प्रधानमंत्री है, यानी पिछले 45 महीनों से, उन्होंने आर्ट्स गैलरी में आए श्रोताओं को बताया किं वे लोगों के हक के लिए लड़ना जारी रखेंगे, चाहे वे सरकार में रहें या नहीं ”


साथ साथ गिलानी ने ये भी कहां कि
गिलानी ने अपने भाषण में सेना को भले ही "अनुशासित" और संविधान का पालन करने वाला बताया, लेकिन उनका मानना है कि अगर सेना रक्षा मंत्रालय के नीचे नहीं आती, तो फिर देश को इस"गुलामी" से बाहर निकलना होगा क्योंकि फिर संसद का कोई महत्व नहीं रहेगा और देश स्वायत्त नहीं होगा
पाकिस्तान में फिलहाल तख्तापलट कि स्थिती टल सी गई है पर पाकिस्तान की परेशानियां दिन ब दिन बढ़ती जा रहीं है जो भी कहो अगर इस बार तख्तापलट हुआ तो पाकिस्तान की स्थिती हर क्षेत्र में बिगड़ सकती है।

Friday 20 January 2012

पब्लिसिटी या गुस्सा

आज कल लोगो को अपना गुस्सा दिखाने का नया तरीका मिल गया है या यू कहे की ये  पब्लिसिटी का नया तरीका बन रहा हैं, हाल ही में  बाबा रामदेव के मुंह पर श्याही फेकी गई, श्याही फेकने वाला दिल्ली के बटला हाउस का रहनें वाला कामरान है जिसकी वजह कुछ यह थी की बटला हाउस में हुए एंकाउंटर पर कामरान नें सवाल पूछा जिसका लेकिन सहीं जवाब न मिलने पर उसने बाबा रामदेव श्याही फेक दी। बाबा रामदेव के समर्थकों ने कामरान को खूब मारा किसी तरह पुलिस ने गुस्साये लोगों से कामरान को बचाया और अस्पताल में भरती कराया । बाबा रामदेव के मुंह पर फेकने के बाद बाबा ने ये कह कर बात खत्म करना चाहीं कि कोई बात नहीं पर अपने आजतक में एक साक्षात्कार में बाबा नें कहां की मेरे ऊपर श्याही ढलवाने के पिछे कांग्रेस का हाथ है।

वहीं बाबा रामदेव के साथ हुई इस हरकत के बाद बाबा रामदेव के समर्थकों ने अगले दिन ही कांग्रेस के ऑफिस पर लगे सोनिया गांधी के पोस्टर पर श्याही फेक दी पुलिस ने जैसे तैसे हालत संभाली क्योकि बाबा के समर्थक और कांग्रेस समर्थकों में  झगड़ा ज्यादा बढ़ रहा था ।

श्याही फेक कर बड़े राजनेताओं की बेजती करना ये पहली बार नहीं हुआ है इससे पहले राजधानी दिल्ली के एनडीएमसी सेंटर में कृषि मंत्री शरद पवार को एक युवक ने चाटा जड़ दिया ये चाटा शरद पवार के सीधे गाल पर लगा। हमलावर य़ुवक का नाम हरविदंर था । ये वहीं हरविंदर है जिसने पिछले दिनो पहले पूर्व दूरसंचार मंत्री सुखराम को भी चाटा मारा था। दिल्ली के जंतर मंतर के पास एनडीएमसी सेंटर में ईफको का कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शरद पवार थे । कार्यक्रम के बाद दोपहर करीब एक बजे जब पवार बाहर निकल रहे थे, हरविदंर पवार के करीब आया और गाल पर चांटा मार दिया।

ये घटनाओं का चलन काफी समय से चलता आ रहा है देखा जाए तो ये गुस्सा दिखाने का तरीका अमेरिका से ही शुरु हुआ है जब एक युवक ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रति पर जूता फेका। धीरे धीरे ये तरीका बढ़ता गया । भारत में गृह मंत्री  पी. चिदबंरम पर भी एक युवक ने ऐसी ही हरकत करने की कोशिश की  । उसके बाद ऐसी कई कॉनफैंस में कई लोगों  ने बड़ी हस्तियों पर भी ऐसे ही हमला करना चाहा।

एक तरफ देखा जाए तो इस तरीको को लोगों का गुस्सा कहां जाता है पर क्या ये सच है कि लोगों का गुस्सा है या पब्लिसिटी पकड़ने का नया तरीका है । इसका जवाब तो कुछ नहीं दिया जा सकता । लोग या हमलावरो को जरा भी डर नहीं होता की उनके साथ आगे क्या हो सकता है पर वो अपने इस गुस्से या पब्लिसिटी को अंजाम देने में जरा भी डरते।

Friday 6 January 2012

सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रभाव

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में सोशल नेटवर्किंग साइट्स की भूमिका महत्वपूर्ण

इंडिया बिजनेस न्यूज एंड रिसर्च सर्विसेज' के सर्वेक्षण ने यह दावा किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में फेसबुक, ट्विटर, ऑरकुट व गूगल जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट की भूमिका महत्वपूर्ण रहीं और ये समाज में सकारात्मक बदलाव भी ला रही हैं। 'सोशल मीडिया एवं आज के समय में युवा' शीर्षक से कराए गए इस सर्वेक्षण में 18-35 साल की उम्र के करीब 1,200 लोगों को शामिल किया गया था।

इंडिया बिजनेस न्यूज एंड रिसर्च सर्विसेज के अनुसार यह भी कहा गया कि करीब 76 प्रतिशत युवाओं ने माना कि सोशल मीडिया उन्हें दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए समर्थ बना रही है। उनका मानना है कि महिलाओं के हित तथा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में यह सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुई है।

सर्वेक्षण के अनुसार, करीब 24 प्रतिशत युवाओं ने अपनी सूचना का स्रोत सोशल मीडिया को बताया, जबकि 54 प्रतिशत ने अपनी सूचना का स्रोत सामूहिक तौर पर समाचार पत्र, टेलीविजन एवं सोशल मीडिया को बताया। करीब 70 प्रतिशत युवाओं का यह भी माना कि किसी समूह विशेष से सम्बद्ध हो जाने भर से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाएगी, बल्कि इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। कुछ सर्वेक्षणों के माध्यम से भी इन सोशल नेटवर्किंग्स के योगदान का पता चला।

ओबामा का ऐतिहासिक चुनाव और सोशल साइट्स की भूमिका
ओबामा वो शख्स हैं जिन्हें सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ताकत का पता है। राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने इसकी ताकत का पूरा इस्तेमाल किया। 2008 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान उन्होंने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों का अपने प्रचार के लिए जबरदस्त इस्तेमाल किया। फेसबुक के जरिए उन्होंने युवाओं से वोट मांगे। इसके जरिए उन्होंने भारी मात्रा में चंदा भी जुटाया। और लोगों ने उनके इस प्रयास का खूब अच्छे तरीके से जवाव दिया और जोर शौर से अपनी प्रतिक्रिया जताई

ट्यूनीशिया और मिश्र के विद्रोह में सोशल नेटवर्किंग की भूमिका

ट्यूनीशिया और मिश्र में सत्ता बदलने में फेसबुक, ट्विटर, यू्ट्यूब और अन्य सोशल मीडिया साइटों की भूमिका अहम रही है। मिश्र और ट्यूनीशिया में क्रांति के मामले में एक बात स्पष्ट हुई जिसको लेकर सभी सहमत हैं कि इन देशों में आंदोलनकारियों ने सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया। यहां तक कि ट्विटर की ताकत के खिलाफ तर्क करने वाले मैलकॉम ग्लैडवेल के अनुसार 'निश्चित रूप से एक दिलचस्प तथ्य तो यह है कि विद्रोहियों ने एक दूसरे से संचार में सोशल नेटर्वकिंग का जमकर इस्तेमाल किया। इन आंदोलनों में इन सोशल साइटों के प्रभाव को लेकर ज्यादा बड़ी बहस छिड़ी है।

न्यूयॉर्क यूनिवर्र्सिटी के जे रोसेन के अनुसार, मिश्र में जब आंदोलन हो रहा था उसके बीच में यह जानना बिल्कुल भी आसान नहीं था कि इस आंदोलन को आखिर कौन सबसे ज्यादा हवा दे रहा था। आंदोलकारी कौन से सोशल मीडिया टूल्स का इस्तेमाल कर रहे थे और उनका कितना असर हो रहा था। लेकिन अब जब धूल छंटने लगी है तो पत्रकार और शिक्षाविद इस कहानी के पीछे पहुंचने लगे ।

मिश्र, ट्यूनीशिया में आंदोलन की चिंगारी जैसा बताया जाता है कि पिछले साल दिसंबर में एक सब्जी बेचने वाले द्वारा अपने को गली के बीच में आग लगा लेने से नहीं फूटी, जबकि इसकी शुरुआत तो करीब एक दशक पहले तब हुई थी जब ट्यूनीशिया के कार्यकर्ता पहली बार ऑनलाइन जाने लगे थे। टेक्नोलॉजी रिव्यू में लिखे गए एक लेख में इस बारे में विवरण मिलता है कि एक पत्रिका के मुख्य संपादक जॉनसन पोंटिन इसके बारे में लिखते हैं हैं कि ट्यूनीशिया और मिश्र में विद्रोह ने जोर पकड़ा इसका पता लगाने के लिए उन्होने अपने रिपोर्टर पोलॉक को इस युवा आंदोलन के पीछे जुड़े प्रमुख लोगों के पास भेजा। ट्यूनीशिया विद्रोह के पीछे जो लोग थे वे अपना वास्तविक नाम तो किसी को नहीं बताते हैं। उनके संगठन तकरिज ने ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति बेन अली के खिलाफ जन विद्रोह तेज किया। तकरिज ने 1998 में एक साइबर थिंक टैंक की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य था अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कम कीमत पर इंटरनेट की सबको उपलब्धता।

अगले एक दशक तक ट्यूनीशिया के काफी ज्यादा लोग ऑनलाइन आने लगे थे। यहां तक कि 2008 में 30,000 ट्यूनीशियाई फेसबुक पर थे। ऑनलाइन माध्यमों पर भी ट्यूनीशिया ने इतनी कड़ी सेंसरशिप लगा रखी थी जितनी ईरान और चीन ने भी नहीं लगाई थी। फिर भी 2009 के आखिर तक 8 लाख ट्यूनीशियाई फेसबुक से जुड़ चुके थे। 2011 में जब बेन अली देश छोड़कर भागा तब तक देश के बीस लाख लोग यानी करीब 20 फीसदी लोग फेसबुक से जुड़ चुके थे।

तकरिज संगठन ने कई अन्य ऑनलाइन माध्यमों का भी सहारा लिया। उन्होंने ट्विटर के फर्जी अकाउंट खोले और यहां तक कि विदेश मंत्रालय की फर्जी साइट भी बनाई। एक दूसरे से बात करने के लिए संगठन के सदस्य इंटरनेट पर स्काइप का इस्तेमाल करते थे। एक व्यक्ति मोहम्मद बोइजिजि की मौत के कुछ ही दिन में ट्यूनीशिया के गरीब आंतरिक इलाकों में विद्रो भड़क गए और दर्जनों प्रदर्शनकारी मारे गए।

मारे गए लोगों के फोटो यूट्यूब फेसबुक और जितने भी ऑनलाइन माध्यम थे उन पर डाल दिए गए। इससे विद्रोह की आग उत्तरी अफ्रीका और पूरे मध्य पूर्व में फैल गई। हजारों ट्यूनीशियाई 24 घंटे ऑनलाइन रहने लगे। इस तरह ट्यूनीशिया में विद्रोह को पूरी तरह सोशल मीडिया ने संचालित किया।

साइबर मीडिया ने किया क्रूरता का पर्दाफाश

मिश्र में सोशल मीडिया की भूमिका के इतिहास में ज्यादा नहीं जा सके, लेकिन अप्रैल 2008 में जब महाला शहर में कपड़ा श्रमिकों ने हड़ताल कर दी तो इंटरनेट पर यह बात फैल गई। विद्रोह तेज होने के साथ ही यहां फेसबुक के उपभोक्ता तेजी से बढऩे लगे। ट्यूनीशिया की तरह एक मोड़ मिश्र में तब आया जब वहां की पुलिस ने खालिद नाम के एक कंप्यूटर प्रोग्रामर को 6 जून 2010 को बड़ी क्रूरता से पीटकर मार डाला।

पुलिस ने ड्रग आदि की कहानी बनाई लेकिन यूट्यूब और फेसबुक पर अपलोड की गई वीडिया ने पूरी कहानी खोल दी और विद्रोह तेज हो गया। फेसबुक की उपलब्धता ने मिश्र में आंदोलन को इतनी हवा दी कि राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक को हटना पड़ा।


सोशल नेटवर्किंग की साइटस का प्रभाव

सोशल नेटवर्किंग की साइटस का प्रभाव कुछ इस तरह पड़ा कि इंटरनेट पर फैली फेसबुक और अन्य तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स की इस बात को लेकर इस बात की चर्चा लंबे समय से होती रही है कि ये आंदोलनों को हवा देने का काम करती हैं।

मिश्र के आंदोलन के समय सोशल साइटों पर उठे जैस्मीन मूवमेंट को चीन में मिल रहे समर्थन से चीन सरकार इतनी घबराई कि उसने इन पर प्रतिबंध लगा दिया। उसके बाद अरब देशों में एक के बाद उग्र प्रदर्शनों के पीछे भी सोशल नेटवर्किंग को जिम्मेदार ठहराया गया।

हाल ही में अपने देश में भी अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए अहिंसक आंदोलन में सोशल मीडिया की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। साथ ही साथ अब मिश्र और ट्यूनीशिया में सोशल नेटवर्किंग साइट्स की भूमिका पर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जो इन घटनाओं को प्रमाणित करती है। इस संगठन के संचालकों के पास इंटरनेट ही एक उचित माध्यम था अपने विचारों के प्रसार के लिए क्योंकि बाकी परंपरागत मीडिया पर तो बेन अली का कब्जा था। तकरिज के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर से पता चला हैं कि प्रत्यक्ष रूप से आपस में मिलने का मतबल था जासूसों और पुलिस को न्योता देना, लेकिन ऑनलाइन रहकर वे गुमनाम रहकर अपना काम कर सकते थे।


सीरिया में विद्रोह

सीरिया में चल रहे मौजूदा विद्रोह में भी सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका हो सकती है, लेकिन इस बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं है। हालांकि इसके लिए लेखक पोलॉक यह भी मानते हैं, कि राजनीतिक बदलावों में सोशल मीडिया की भूमिका देश और स्थान के मुताबिक कम या ज्यादा हो सकती है।

भारत में सोशल नेटवर्किंग की भूमिका
भारत में सोशल नेटवर्किंग की भूमिका सबसे ज्यादा अन्ना हजारे द्वारा चलाए गए भष्ट्राचार के विरोद्ध अनश्न आदोंलन में दिखी। जिसमें लोगों ने रैलियों में तो भाग लिया साथ साथ सोशल साइट्स के माध्यम से भी बढ़ चढ कर अपनी प्रतिक्रया दिखाई। यह आदोंलन 2011 का सबसे बड़ी घटना कहीं जाती है । जिस पर आम लोगों ने ही नहीं ब्लकि बड़ी बड़ी हस्तियों ने भी भाग लिया
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और टीम द्वारा चलाए गए भष्ट्राचार के विरुद्ध आदोंलन में सबसे ज्यादा समर्थन देश के युवाओं से मिला। अपने स्कूल कॉलेजो और ऑफिसों को छोड़कर युवा देश के अलग अलग हिस्सो में भष्ट्राचार के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। सबसे खास बात ये है कि इनके प्रदर्शन का तरीका नए नारे, रोचक तस्वीरों और संदेशो वाले बैनर, टी-शर्ट और टोपी पर आदोंलन के समर्थन में की गई थी कलाकारी साथ ही साथ ढपली बजाकर गाने गाते हुए विरोध जताया। इन सबने भष्ट्राचार के विरुद्ध किए जा रहे आदोंलन में जान डाल दी ऐर साथ ही साथ सोशल साइट्स का भी भरपूर इस्तेमाल किया और प्रतिक्रया जताई। इस आदोंलन से जुड़ने की अपील फेसबुक और एसएसएस से करी गई। विरोध में जहां जमकर नारे लगे वहीं स्मार्टफोन और सोशल नेटर्वकिंग की मदद से लाइव तस्वीरे और वीडियो अपलोड की गई।

सोशल नेटवर्किंग से बड़ी हस्तियों द्वारो आदोंलन में भागीदारी

·अन्ना हजारे की गिरफ्तारी के खिलाफ और उनके आदोंलन के हक में लड़ाई का अख़ाड़ा राजधीनी की सड़के बनी तो साथ साथ सोशन नेटर्वकिंग में भी हलचल मची। इंटरनेट के अखाड़े में अन्ना के समर्थको ने ही नहीं ब्लकि उनके आलोचक भी गिरफ्तारी के फैसले की आलोचना में खुलकर सामने आए। नामी हस्तियों से लेकर छात्रों तक हर किसी ने अन्ना की गिरफ्तारी पर नाराजगी जताई।

· फेसबुक, ट्विटर से लेकर ब्लैक मैसेंजर तक अन्ना की लड़ाई और अपना विरोध जताने के उनके हक पर समर्थन की गूंज सुनाई दी। फेसबुक पर इंडिया अगेंस्ट करप्शन का वेबपज बनाया जहां आदोंलन की पल पल की जानकारीयां मिलती रही।
· ट्विटर पर सिनेमा स्टार अनुपम खेर, गुल, पना, फिल्म निर्माता प्रीतीश नंदी, प्रसीद्ध कलाकार और कांग्रेस के टिकट पर लालकृष्ण अण्डवानी के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी मलिक्का साराभाई, लेखक चेतन भगत जैसे लोगों का गुस्सा अन्ना की गिरफ्तारी पर फूटा। इन सब ने सोशल नेटर्वकिंग के माध्यम से ही अपनी नाराजगी जताई।

· भगत ने सरकार के कटाक्ष करते हुए ट्विट किया, स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के झंड़ा फैराने के महज 24 घंटे बाद ही अन्ना को पुलिस ने बिना किसी अपराध के गिरफ्तार कर लिया।
· अन्ना के आदोंलन और तरीकों से इत्तेफाक न रखने के बावजूद गीतकार और राज्यसभा के सदस्य जावेद अख्तर ने ट्विट करते हुए कहां कि अन्ना को लेकर मुझे कुछ आपत्तियां है लेकिन उनकी गिरफ्तारी को किसी भी सूरत में जायज नहीं कहां जा सकता ।

· लेखीका तस्लीमा नसरीन ने भष्ट्राचार के खिलाफ अलख जगाने वाले ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के पीटर ईगन के बयान को ट्विट किया, अन्ना का आदोंलन भष्ट्राचार मिटाने के लिए तो ठीक नहीं लेकिन सोच जगाने के लिए अच्छा है।
· अन्ना के सोशल नेटवर्किंग सरगर्मी का आलम यह था कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन के फेसबुक पेज पर अन्ना की रिहाई की खबर आते ही आधे घंटे के भीतर 2 हजार से ज्यादा लोग टिप्पणी कर चुके थे। तकरीबन अप्रैल में केवल कुछ हजार की फॉलोइंग वाले इस पेज से जुडे लोगों की सख्या अब सवा तीन लाख से ज्यादा हो चुकी थी। आकड़े दर्शा रहे है कि किस तरह इस आदोंलन में लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया ।